दिल बच्चा है
एक दौर था उम्र का वह भी,
झूठ और सच में फर्क कहाँ।
जीभ ने तो वही कहा सिर्फ,
जो देख सुन लिया यहाँ वहाँ।
तैराते कागज की कश्ती,
देखा जो झमझम बारिश में।
मचल गया दादा का मन भी,
वह खूब नहाए बारिश में।
खांस-खांस कर खारिश में ही,
जब घर पहुँचे दम फूल गया।
डाँट लगाई दादी जी ने,
फिर कड़वा काढ़ा पिला दिया।
सपने आएं बूढ़े को भी,
उनकी ताबीर बने कैसे।
शरीर से नाकाबिल बिल्कुल,
दिल है बच्चा माने कैसे।
गए घूमने पार्क में तो,
घिसी बर्फ बड़ी इच्छा जागी।
घूम गया बचपन आँखों में,
दो-दो बार में स्वाद लागी।
चाट-पकौड़ी मन करता है,
पेट मगर गुड़-गुड़ हो जाता।
मूंगफली दाने खा जाएं,
दर्द दाँत का टीस बढ़ाता।
पैर कब्र में लटक रहे हैं,
मन इच्छाएं न पीछा छोड़ें।
उम्र पचपन की दिल बचपन "श्री",
कैसे इससे मुँह को मोड़ें।
स्वरचित-सरिता श्रीवास्तव "श्री"
धौलपुर (राजस्थान)
Mohammed urooj khan
08-Feb-2024 11:41 AM
👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾
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Gunjan Kamal
07-Feb-2024 06:23 PM
👏👌
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Punam verma
06-Feb-2024 09:43 AM
Nice👍
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